पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होती है ल्यूपस की बीमारी, जानिए इसके बारे में

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वर्ल्ड ल्यूपस डे ल्यूपस एक ऐसी बीमारी है जो हमारे दिल के जोड़ों, फेफड़ों के बालों के साथ-साथ चेहरे को भी प्रभावित करती है। तो आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में, इसके लक्षण, बचाव और इलाज के बारे में।अगर आपको भी शरीर के अलग-अलग हिस्सों जैसे त्वचा, घुटने, फेफड़े या अन्य जगहों पर सूजन का अनुभव होता है तो इसे हल्के में लेने की गलती न करें क्योंकि यह ल्यूपस का लक्षण हो सकता है। ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है। लेकिन लोगों में इस बारे में ज्यादा जागरुकता नहीं है, जिसके चलते अक्सर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है और बाद में हालत गंभीर हो जाती है। महिलाओं में किशोरावस्था से लेकर 30 साल तक इस बीमारी का खतरा अधिक होता है।

विश्व ल्यूपस दिवस

10 मई को दुनिया भर में वर्ल्ड ल्यूपस डे के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक करना है. जिससे पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं। ध्यान दें कि ल्यूपस कोई बीमारी नहीं है जो छूने से फैलती है, न ही सेक्स करने से। शरीर के जिस भी अंग में रोग हो, वह पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।

ल्यूपस क्या है?

ल्यूपस एक ऑटोइम्यून बीमारी है जो शरीर की कोशिकाओं और ऊतकों को नुकसान पहुंचाती है। जिससे हृदय, फेफड़े, जोड़, त्वचा, मस्तिष्क प्रभावित होते हैं, लेकिन इसका प्रभाव किडनी पर अधिक पड़ता है। यह रोग आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है।

ल्यूपस के सामान्य लक्षण

रक्त में प्लेटलेट्स की मात्रा में कमी

  • सांस लेने में कठिनाई

  • तेज़ बुखार

  • याददाश्त में कमी

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप

  • थकान

  • शरीर में दर्द होना

चेहरे पर तितली के आकार में लाल चकत्ते या लाल धब्बे

  • बालों का झड़ना

  • सिर दर्द

एनीमिया (खून की कमी)

  • बार-बार गर्भपात होना

  • जोड़ों का दर्द (कलाई जैसे छोटे जोड़)

सिर में आधासीसी जैसा दर्द

  • तनाव

ल्यूपस रोग का उपचार

सबसे पहले मरीज में देखे गए इन सभी लक्षणों की जांच की जाती है। इसके बाद जरूरी ब्लड टेस्ट किए जाते हैं। ताकि शरीर में यूरिक एसिड और क्रिएटिनिन के स्तर का पता चल सके। डॉक्टर ब्लड के साथ-साथ यूरिन टेस्ट की भी सलाह देते हैं। स्थिति के आधार पर किडनी के स्वास्थ्य परीक्षण भी किए जाते हैं। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड भी किया जाता है। जिससे फेफड़ों की स्थिति का पता चल सकता है। रोग के स्तर का निर्धारण करने के बाद आहार में आवश्यक परिवर्तन किए जाते हैं और दवाएं भी दी जाती हैं। डायलिसिस की भी सलाह दी जाती है यदि परीक्षण में गुर्दे की कोई समस्या दिखाई देती है।

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