यूके में लोकसभा चुनाव कल, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से क्यों मुंह मोड़ सकता है भारतीय

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यूके में रहने वाले भारतीय मूल के अनुमानित 18 लाख लोग ना सिर्फ वोटों के लिहाज से काफी अहम हो जाते हैं, बल्कि भारतीय लोगों का प्रभाव ब्रिटिश समुदाय पर काफी ज्यादा हो चुका है, लिहाजा भारतीय समुदाय की राजनीतिक प्राथमिकताएं, यूके चुनाव के परिणाम में निर्णायक फैक्टर हो सकती हैं।

ब्रिटेन की कुल आबादी में भारतीय समुदाय के लोगों का प्रतिशत 2.5% है, जो एक महत्वपूर्ण और बढ़ती जनसांख्यिकी है। यह समुदाय अपनी उच्च शिक्षा, व्यावसायिक सफलता और आर्थिक योगदान के लिए जाना जाता है, लिहाजा अन्य समुदायों के मुकाबले भारतीय समुदाय का प्रभाव काफी ज्यादा है।

आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय परिवार हाई इनकम क्लास में सबसे आगे हैं, जिनमें से 42 प्रतिशत ने 2015-2018 के बीच हर हफ्ते 1,000 पाउंड से ज्यादा कमाया है। यानि, हर महीने 4 हजार पाउंड, जो अन्य समुदायों के इनकम के मुकाबले काफी ज्यादा है।

आबादी का एक छोटा हिस्सा होने के बावजूद, भारतीय समुदाय यूके के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान करते हैं। यह आर्थिक ताकत पर्याप्त राजनीतिक प्रभाव में तब्दील हो जाती है, जिससे सभी प्रमुख राजनीतिक दल उनके वोट की अत्यधिक मांग करते हैं

क्या ब्रिटेन के भारतीय ऋषि सुनक से दूर हो गए हैं?

2022 में ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ क्योंकि वे ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री बन गए। ऋषि सुनक के प्रधाननमंत्री बनने का जश्न ब्रिटिश भारतीय समुदाय ने भी मनाया, जो ब्रिटेन की राजनीति में उनके बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।

लेकिन, ऋषि सुनक काफी हद तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने में नाकाम रहे हैं और ब्रिटेन में लोगों के जीवन यापन की लागत काफी बढ़ती ही रही है।

यूके स्थित टेक्नोलॉजी इन्वेस्टर अश्विन कृष्णस्वामी ने साउथ चायना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की एक रिपोर्ट में बताया है, कि “बहुत सी समस्याएं खुलकर सामने आ रही हैं और बड़ा प्रवासी समुदाय कंजर्वेटिव पार्टी विरोधी लहर की भावना के साथ जा रहा है। लोग कह रहे हैं कि शायद नई सरकार लाने का समय आ गया है।”

आपको बता दें, कि ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी के नेता हैं और फिलहाल पार्टी के अध्यक्ष भी वहीं हैं।

लंदन स्थित भारतीय लेखक प्रियजीत देबसरकर ने (SCMP) को बताया, “ऋषि सुनक का अभियान भविष्य की ओर देखने के बारे में रहा है। लेकिन अतीत में आपके (कंजर्वेटिव पार्टी) नेतृत्व में बहुत से बदलाव हुए हैं, लिहाजा लोग सोच रहे हैं क्या गारंटी है कि आप बने रहेंगे।”

आपको बता दें, कि पिछली बार कंजर्वेटिव पार्टी को प्रचंज बहुमत मिली थी, लेकिन पार्टी फूट का शिकार हो गई और पिछले 2 साल में ऋषि सुनक देश के तीसरे प्रधानमंत्री हैं, इसने कंजर्वेटिव पार्टी को लेकर लोगों में अविश्वास भर दिया है।

 

जीवन-यापन की लागत के संकट ने कैसे प्रभावित किया है?

कोविड संकट के बाद से ही यूनाइटेड किंगडम जीवन-यापन की लागत के संकट से जूझ रहा है, 2021 के अंत से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें घरेलू इनकतम की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं। इस आर्थिक तनाव ने ब्रिटिश भारतीय समुदाय को भी असंगत रूप से प्रभावित किया है, जिनमें से कई छोटे व्यवसाय के मालिक और स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों से जुड़े प्रोफेशनल हैं।

कृष्णास्वामी ने कंजर्वेटिव सरकार में विश्वास की कमी को बताते हुए कहा, “NHS एक बड़ी आपदा है। NHS में डॉक्टरों के विभिन्न वर्गों के बीच वेतन में भारी असमानता है।” राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) के बारे में भारतीय समुदाय की चिंताएं इसलिए हैं, क्योंकि इसमें भारतीय मूल के 60,000 से ज्यादा मेडिकल प्रोफेशनल काम करते हैं, लेकिन इस सेक्टर में आई परेशानी ने भारतीयों के असंतोष को काफी बढ़ा दिया है।

हिंदू समुदाय की भूमिका क्या रही है?

ब्रिटिश भारतीय आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने वाला हिंदू समुदाय अपनी राजनीतिक और सामाजिक चिंताओं के बारे में काफी मुखर रहा है। चुनाव से पहले, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और लेबर पार्टी के नेता कीर स्टारमर, दोनों ने हिंदू मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए काफी मेहनत किए हैं।

ऋषि सुनक ने नेसडेन में BAPS श्री स्वामीनारायण मंदिर का दौरा किया, जहां उन्होंने भारतीय “समुदाय को गौरवान्वित करने” का वादा किया, जबकि स्टारमर ने किंग्सबरी में स्वामीनारायण मंदिर का दौरा किया, जहां उन्होंने “भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी” बनाने का संकल्प लिया।

वहीं, कीर स्टारमर ने ब्रिटिश हिंदू संगठनों की तरफ से बनाए गये “हिंदू घोषणापत्र” का समर्थन कर ऋषि सुनक के लिए परेशानी को बढ़ा दिया है, जिसमें चुनाव जीतने वाले प्रतिनिधियों से हिंदू पूजा स्थलों की रक्षा करने और हिंदू विरोधी घृणा से निपटने का आह्वान किया गया है।

कीर स्टारमर ने हिंदू घोषणापत्र का सीधा समर्थन करते हुए कहा है, कि ब्रिटेन में हिंदूफोबिया की घटनाएं बढ़ी हैं, उनकी पार्टी की सरकार बनने पर हिंदूफोबिया से निपटने के लिए काफी काम किए जाएंगे।

वहीं, ऋषि सुनक ने कहा, “यह मंदिर इस (हिंदू) समुदाय की तरफ से ब्रिटेन को दिए गए योगदान का एक बड़ा बयान है।” जबकि, स्टारमर ने भी इसी भावना को दोहराते हुए कहा, “अगर हम अगले हफ्ते चुने जाते हैं, तो हम आपकी और जरूरतमंद दुनिया की सेवा करने के लिए ‘सेवा की भावना’ से शासन करने का प्रयास करेंगे।”

लेबर पार्टी, जिसे पारंपरिक रूप से ब्रिटिश भारतीयों के बीच मजबूत समर्थन प्राप्त है, उसने कंजर्वेटिव सरकार के साथ भारतीयों के असंतोष का जबरदस्त लाभ उठाया है। लेबर पार्टी के नेता कीर स्टारमर ने पार्टी को एक स्थिर और सक्षम विकल्प के रूप में पेश किया है, जो बढ़ती जीवन-यापन लागत से निराश मतदाताओं को एक उम्मीद देता है।

हायर एजुकेशन फर्म e1133 लिमिटेड के CEO सुप्रियो चौधरी ने SCMP को बताया, कि “घरों का किराया छह से सात साल पहले की तुलना में 100 प्रतिशत ज्यादा हो चुका है।”

उन्होंने कहा, कि “यदि आप एक नए अप्रवासी हैं, तो आप घर खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते।” चौधरी ने सार्वजनिक सेवाओं और जीवन-यापन की लागत के संकट को संबोधित नहीं करने के लिए ऋषि सुनक की आलोचना की, और सरकार में बदलाव की आवश्यकता की ओर इशारा किया।

वहीं, लेबर पार्टी का चुनावी नारा, “बदलाव का समय आ गया है” भी हिट साबित हो रहा है।

ब्रिटिश फ्यूचर थिंक टैंक के डायरेक्टर सुंदर कटवाला ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है, कि “कंजरवेटिव पार्टी के लिए, जाहिर है, उनके पास पहली बार ऋषि सुनक – एक ब्रिटिश भारतीय नेता – है। यह एक अज्ञात कारक है कि ब्रिटिश भारतीय मतदाताओं के लिए यह कितना मायने रखता है, कि पार्टी का नेता उनकी पृष्ठभूमि से है।”

लेकिन महत्वपूर्ण आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रभाव के साथ, जीवन-यापन की लागत में कमी, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक सेवाओं के बारे में ब्रिटिश भारतीय समुदाय की चिंताएं चुनाव से पहले प्रमुख मुद्दे हैं। क्या ऋषि सुनक उनका समर्थन फिर से हासिल कर पाएंगे या लेबर का बदलाव का वादा और ज्याद मजबूती से प्रतिध्वनित होगा, यह देखना अभी बाकी है। और गुरुवार को तय हो जाएगा, कि क्या भारतीय समुदाय ऋषि सुनक के साथ जाता है, या लेबर पार्टी को चुनता है

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