गोवर्धन पर्वत 30 हज़ार ऊंचा था घटकर 30 मीटर रह गया देखिये जरुर
यह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और इस पूजा का खास महत्व होता है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने मथुरा, गोकुल, वृंदावन के निवासियों की बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया था। लोगो ने इस पर्वत के नीचे आकर अपनी जान बचाई थी। इसके बाद से ब्रजवासी हर साल गोवर्धवन पूजा करने लगे और यह त्योहार प्रचलित हो गया।
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कहां है गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
क्या शापित है गोवर्धन पर्वत?
पांच हजार साल पहले यह परव्त 30 हज़ार मीटर ऊंचा था, लेकिन अब यह घटकर 30 मीटर ऊंचा ही रह गया है और इसके पीछे पुलस्त्य ऋषि का शाप बताया जाता है। उनके शाप के कारण यह पर्वत हर रोज़ एक मुट्ठी छोटा होता जाता है।
श्रीकृष्ण ने क्यों उठाया था गोवर्धन पर्वत
कहा जाता है कि एक बार भगवान श्री कृ्ष्ण अपनी गोपियों और ग्वालों के साथ वहां गाय चरा रहे थे। जब गायों को चराते हुए श्री कृ्ष्ण गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो गोपियां 56 प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से नाच-गा रही थीं। तब उन्होनें गोपियों से पूछा कि यह क्या हो रहा है तो उन्होने बताया कि यह सब देवराज इन्द्र की पूजा करने के लिए किया जा रहा है। देवराज इन्द्र प्रसन्न होंगे तो हमारे गांव में वर्षा करेंगे, जिससे अन्न पैदा होगा। इस पर भगवान श्री कृष्ण उन्हे समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते हैं।
ब्रज के लोगों ने श्री कृ्ष्ण की बात मानी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी। इन्द्र देव ने जब यह सब देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है तो उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और फिर इन्द्र गुस्से में आ गए और उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर खूब बरसे, जिससे वहां का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए।
अपने देव का आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें। यहां ऐसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गए ओर दौड़ कर श्री कृ्ष्ण की शरण में पहुंचे। तब श्री कृ्ष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। जब सब लोग गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गए।
ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा और यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगने लगे। सात दिन बाद श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और इसके बाद ब्रजबासी हर साल गोवर्धन पूजा करने लगे।