चीन ने तवांग में LAC के 150 मीटर के दायरे में बनाई सड़क, सैटेलाइट तस्वीरों से हुआ खुलासा

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अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प को 10 दिन से ज्यादा का समय बीत चुका है। लद्दाख की गलवान घाटी में हुई हिंसा के बाद से यह सबसे हिंसक झड़प है। ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञों ने उपग्रह तस्वीरों के आधार पर खुलासा किया है कि तवांग जिले के यांग्त्ज़ी पठार क्षेत्र में भारत को चीन पर रणनीतिक लाभ है।

सामरिक रूप से अहम इस इलाके में भारतीय सेना को मात देने के लिए पिछले एक साल में चीन ने नए सैन्य और ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर लिए हैं, जिससे अब वह जब चाहे इस इलाके में अपने सैनिकों को बड़ी तेजी से भेज सकता है. इस बीच चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के 150 मीटर के दायरे में पहुंच गया है। चीन ने एलएसी के 150 मीटर के दायरे में सड़क बना ली है। तवांग क्षेत्र में चीन के तेजी से बुनियादी ढांचे के विकास से चीन वहां अतिरिक्त सैनिकों को तेजी से तैनात कर सकता है। यह दावा ऑस्ट्रेलियन स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) की एक नई स्टडी में किया गया है।

अध्ययन 9 दिसंबर को यांग्त्ज़ी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच एक भौतिक संघर्ष का अनुसरण करता है। अध्ययन क्षेत्र में एलएसी के साथ प्रमुख क्षेत्रों की उपग्रह छवियों के विश्लेषण पर आधारित है। स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने डोकलाम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक इतने बड़े पैमाने पर सैन्य तैयारी कर ली है कि दोनों देशों के बीच कभी भी टकराव हो सकता है. यह जानबूझकर भी हो सकता है। एएसपीआई ने कहा कि तवांग रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। तवांग से भूटान की सीमा में चीन की घुसपैठ पर भारत आसानी से नजर रख सकता है।

अध्ययन से पता चला कि यांग्त्ज़ी का पठार दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। यह समुद्र तल से 5,700 मीटर की ऊंचाई पर है। इससे पूरे क्षेत्र की निगरानी करना आसान हो जाता है। इस पर भारत का कब्जा है, जिसके कारण यह चीन से सेला दर्रा सुरक्षित करने में सक्षम है। तवांग को जोड़ने का एकमात्र तरीका सेला पास है। भारत यांग्त्ज़ी पठार की ऊँची भूमि पर एक प्रभावशाली स्थिति को नियंत्रित करता है। इसलिए चीन ने इस नुकसान की भरपाई नए सैन्य और परिवहन बुनियादी ढांचे का निर्माण कर की है, ताकि वह इस क्षेत्र में तेजी से सैनिकों को ला सके।

अध्ययन में कहा गया है कि चीन ने तांगवु न्यू विलेज से एलएसी रिज-लाइन के 150 मीटर के भीतर कई प्रमुख कच्ची सड़कों को अपग्रेड किया है और एक ‘सील’ सड़क बनाई है। वर्तमान में इस सड़क के अंत में पीएलए का एक छोटा शिविर भी है। यह वह नई सड़क थी जिसने 9 दिसंबर की झड़प के दौरान चीनी सैनिकों को भारतीय चौकियों की ओर बढ़ने में सक्षम बनाया। बता दें कि पूर्वी लद्दाख में गलवान और पैंगोंग त्सो में सैनिकों की वापसी और फिर से तैनाती से चीन के साथ संघर्ष का खतरा कम हो गया है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश में यांग्त्ज़ी पठार पर संघर्ष का विपरीत चलन चल रहा है। अध्ययन में कहा गया है कि सीमा चौकियों की तैयारी का परीक्षण करने और यांग्त्ज़ी में यथास्थिति को बाधित करने के लिए चीनी सैनिकों द्वारा हाल ही में उकसाने वाले कदमों ने एक खतरनाक मिसाल कायम की है।

भारत सेला दर्रे के पास सुरंग बना रहा है जो अगले साल (2023) तक बनकर तैयार हो जाएगी। इसके बाद भी यांगत्जी पठार से तवांग जाने वाले हर वाहन पर नजर रखी जाएगी। यहां की ऊंचाई वाले इलाकों में भारतीय सेना जरूर मौजूद है, लेकिन युद्ध के समय इसकी आपूर्ति लाइनें आसानी से काटी जा सकती हैं। यहां बनी सड़क भी जर्जर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन यांग्त्ज़ी पठार में निचले इलाके में है, लेकिन उसने बुनियादी ढांचे में भारत की तुलना में बहुत बड़े पैमाने पर निवेश किया है। चीनियों ने कई सड़कों की मरम्मत की है और उन्हें अपने नए बसे गांवों से जोड़ा है। चीन का यह गांव एलएसी से महज 150 मीटर की दूरी पर है।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में भारतीय सेना के साथ संघर्ष में हारने के बाद चीन ने पूर्वोत्तर सीमा से 150 किमी दूर ड्रोन और लड़ाकू जेट तैनात किए हैं। मैक्सार टेक्नोलॉजी की सैटेलाइट इमेज में चीन की हरकतें साफ देखी जा सकती हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने बंगरा एयरबेस पर सोयरिंग ड्रैगन ड्रोन तैनात किए हैं। सैटेलाइट इमेज में यह ड्रोन नजर आ रहा है। बांगडा एयरबेस अरुणाचल सीमा से महज 150 किमी दूर है। इसके बाद भारतीय वायुसेना ने बीते गुरुवार और शुक्रवार को युद्धाभ्यास भी किया। इससे पहले 11 दिसंबर को अमेरिकी रक्षा वेबसाइट वॉर जोन ने तिब्बत के शिगात्से पीस एयरपोर्ट पर 10 चीनी विमान और 7 ड्रोन दिखाते हुए एक सैटेलाइट इमेज जारी की थी। चीन के तिब्बत में निंगची, शिगात्से और नागरी में 5 हवाई अड्डे हैं और यह भारत-नेपाल सीमा के करीब है।

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