रीड की हड्डी का ट्यूमर – कारण और उपचार
आज हम आपको रीड की हड्डी से जुड़े ट्यूमर के संकेतों के बारे में कुछ जानकारी देने वाले है। रीड की हड्डी स्पाइन में सुरक्षित रहती है| बॉडी में फाइबर मसल्स और ब्रेन को सूचना पहुंचती रहती है। अगर रीड की हड्डी का ट्यूमर हो जाता है, तो वह इस संपर्क में बाधा उत्पन्न कर देता है जिसकी वजह से स्वास्थ्य को गंभीर खतरा बन जाता है। रीड की हड्डी में नियोप्लाज़्म नाम के उत्तक की अस्वाभाविक वृद्धि होती है। नियोप्लाज़्म उत्तक दो प्रकार के होते हैं एक जो कैंसर ग्रस्त नहीं होते जिन्हें बिनाइन के नाम से जानते हैं| दूसरे वे जो कैंसर से ग्रसित होते हैं जिन्हें मैलिग्रेंट कहते हैं।
रीड की हड्डी के ट्यूमर के प्रकार
एक्स्ट्राड्युरल ट्यूमर Extradural Tumor
एक्स्ट्रामेडयुलरी ट्यूमर Extra Medualary Tumor
इंट्रा मेदयुलरी ट्यूमर Intramedullary Tumors
रीड की हड्डी में ट्यूमर होने के लक्षण
दर्द जैसे ही आप की रीढ़ की हड्डी में टयूमर पनपने लगता है, तो आपकी पीठ का दर्द शुरू होने लगता है| इतना ही नहीं बल्कि रीड की हड्डी पर दबाव पैदा होने से दर्द बेहद ज्यादा होने लगता है और दर्द के साथ जलन कभी एहसास होने लगता है।
कमजोरी आना
जैसे-जैसे रीड की हड्डी का कैंसर फैलने लगता है वैसे-वैसे शरीर की शक्ति भी कम होने लगती है| आदमी पूरी तरीके से कमजोर हो जाता है शरीर की कमजोरी इतनी बढ़ जाती है कि वह किसी वस्तु को उठाने में भी सक्षम नहीं रह पाता और दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
गैर सर्जिकल उपचार के तरीके
ब्रेसिंग- कीमोथेरेपी-कीमोथेरेपी से कैंसर की बढ़ती हुई कोशिकाओं को रोका जा सकता है, साथ ही दवाओं के प्रयोग से कैंसर का इलाज और नियंत्रण दोनों किया जा सकता है। रेडिएशन थेरेपी-रेडिएशन थेरेपी के जरिए कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है, ताकि ट्यूमर को छोटा या फिर उसको बढ़ने से रोका जा सके।इसके अलावा आपको बता दें। किविशेषज्ञों के मुताबिक टीबी जैसी बीमारी अब रीढ़ की हड्डी में जा पहुंची है। इसका मुख्य कारण बन रही है जीवन शैली।
देर रात तक जागना, कुर्सी पर बैठे रहना और दिनभर बैठकर एक स्थिति में काम करने से रीढ़ की हड्डी कमजोर हो रही है। ऐसी स्थिति वाले 10 प्रतिशत लोग टीबी के शिकार हैं। स्तर कुछ ऐसा हो जाता है कि कमजोरी के कारण टीबी जैसी बीमारी रीढ़ की हड्डी को पूरी तरह से खोखला कर देती है।
आपको रोजाना 10 मिनट के करीब कमर, पीठ तक दर्द हो रहा है तो तत्काल डॉक्टर से सलाह लें। इसके अलावा सीटी स्कैन या एमआरआइ कराएं, नहीं तो टीबी जैसी बीमारी शरीर के अंदर पहुंचने में देर नहीं करेगी। समय रहते इलाज कराया गया तो एक महीने में आ ठीक हो जाएंगे। नहीं तो पूरी की पूरी रीढ़ की हड्डी बदलनी पड़ेगी।
सेमिनार में पहुंचे बांबे अस्पताल के डॉ. विशाल कुंदनानी ने रीढ़ की हड्डी में होने वाली बीमारियों को विस्तार से बताया। मौके पर नागपुर आर्थो स्पेशिलिटी हॉस्पिटल के डॉ. मनोज सिंगरखिया ने होने वाली बीमारियों से बचाव के सुझाव दिए। इस अवसर पर रायपुर से डॉ सुनील खेमका, डॉ. एस के फुलझरे मौजूद रहे।
पीठ दर्द को आम दर्द मानकर नजरअंदाज न करें। इसे मामूली समझना या फिर पेन किलर खाकर टाल देना ठीक नहीं। बांबे हॉस्पिटल के स्पाइन के विशेषज्ञ विशाल कुंदनानी की मानें तो हाल के दिनों में ऐसे केसों की संख्या में इजाफा हुआ है, जो पीठ दर्द को मामूली मानकर अनदेखा करते रहे। समस्या बढ़ने पर पहुंचे तो स्पाइनल टीबी निकलकर सामने आई।
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