कोलकाता कांड पर CBI ने SC में दाखिल की रिपोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई सीबीआई की इस स्टेटस रिपोर्ट के अंदर क्या-क्या है, कोलकाता कांड ये तो पता नहीं. लेकिन आज तक को सीबीआई के सूत्रों से जो जानकारी हाथ लगी है, वो बेहद चौंकाने वाली है. तो स्टेट्स रिपोर्ट से हट कर आपको बताते हैं कि आखिर पिछले दस दिनों की जांच के बाद सीबीआई इस केस को लेकर किस नतीजे पर पहुंची है.

रेप नहीं गैंगरेप का मामला

तो सीबीआई सूत्रों से आजतक को मिली जानकारी के मुताबिक आरजे कर अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के साथ गैंगरेप नहीं हुआ था. बल्कि ये एक रेप था. और ये रेप और रेप के बाद जूनियर डॉक्टर का कत्ल करने वाला एक अकेला संजय रॉय था. वही संजय रॉय जिसे 9 अगस्त को ही कोलकाता पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. और वही संजय रॉय जो फिलहाल सीबीआई की कस्टडी में है.

पुलिस और CBI की सेम लाइन

सूत्रों के मुताबिक पहले कोलकाता पुलिस और फिर सीबीआई दोनों की लाईन ऑफ इन्वेस्टिगेशन मौका-ए-वारदात यानी उस सेमिनार हॉल को लेकर एक ही जैसी थी. दरअसल, सेमिनार हॉल की तरफ जाने वाले सीसीटीवी फुटेज में सिर्फ एक ही संदिग्ध नजर आया था और वो संजय रॉय ही था. इसके अलावा रात तीन से लेकर सुबह साढ़े पांच बजे तक सेमिनार हॉल की तरफ जाता कोई संदिग्ध मिला ही नहीं. जो कुछ लोग कैमरे में वहां से गुजरते दिखाई भी दिए, उनमें से ज्यादतर लोग तीन से पांच मिनट में अपने-अपने वार्ड या अपने-अपने काम में जुटे नजर आए. जिसका सबूत उन-उन जगहों पर लगे सीसीटीवी कैमरे ने दिया. यानी एक अकेला संजय रॉय था, जो 40 मिनट से ज्यादा सेमिनार हॉल में रहा. सेमिनार हॉल से बरामद ब्लूटूथ नेकबैंड और उसका कनेक्शन संजय रॉय के मोबाइल से होना भी इस केस में एक अहम सबूत बन गया.

संजय रॉय ने बताई अपनी करतूत

सूत्रों के मुताबिक संजय रॉय ने 9 अगस्त को ही कोलकाता पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. इसके बाद 14 अगस्त को जब वो सीबीआई हिरासत में गया, तब भी उसने ना सिर्फ अपना जुर्म कबूला, बल्कि घटना वाली रात और सुबह की पूरी कहानी बयान कर दी थी. लेकिन आरोपी के इकबालिया बयान के बावजूद पहले कोलकाता पुलिस और फिर सीबीआई ठोस सबूतों की तलाश में थी. और ये तलाश खत्म हुई फॉरेंसिक रिपोर्ट पर.

फॉरेंसिक रिपोर्ट ने खोला राज

सूत्रों के मुताबिक सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब कोलकाता ने सीबीआई को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इस रिपोर्ट का इसलिए इंतजार था, क्योंकि इससे ये पता चलना था कि केस रेप का है या गैंगरेप का. और फॉरेंसिक रिपोर्ट ने इसका जवाब दे दिया. सीबीआई को मिली फॉरेंसिक रिपोर्ट के मुताबिक पीड़ित और आरोपी यानी संजय रॉय के डीएनए प्रोफाइल मैच कर गए. इतना ही नहीं फॉरेंसिक जांच में पीड़ित के प्राइवेट अंगों से संजय रॉय के अलावा किसी और का डीएनए प्रोफाइल नहीं मिला. इसका मतलब ये हुआ कि पीड़िता के साथ रेप हुआ था. गैंगरेप नहीं. यानी रेप के मामले में कम से कम अकेला संजय रॉय ही शामिल था. और इसी रेप के दौरान संजय रॉय ने ही जूनियर डॉक्टर का क़त्ल किया. यानी सीबीआई की रिपोर्ट हु ब हू वही है, जो कोलकाता पुलिस की शुरुआती चार दिनों की तफ्तीश में सामने आई थी.

इन सवालों के जवाबों की तलाश

अब सवाल ये है कि सीबीआई ने अब तक की अपनी इस जांच का खुलासा क्यों नहीं किया? तो सूत्रों के मुताबिक इस केस में कई ऐसे पहलू अब भी बाकी हैं, जिनकी जांच जारी है. दरअसल, सीबीआई ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि वारदात के बाद मौका-ए-वारदात से क्या सबूतों को मिटाने की कोशिश की गई थी? क्या जानबूझ कर एफआईआर देरी से दर्ज की गई? क्या केस को रफा दफा करने के लिए प्रिंसिपल ने कोई साज़िश रची? और क्या ये सब खुद की और अस्पताल की साख बचाने के लिए किया गया?

संदीप घोष पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार

यही वजह है कि पिछले पांच दिनों से सीबीआई लगातार आरजी कर अस्पताल के प्रिंसिपल संदीप घोष से पूछताछ कर रही है. वारदात के बाद की तमाम लापरवाहियों की कड़ियों को जोड़ने के लिए ये पूछताछ हो रही है. और सीबीआई सूत्रों की मानें तो अगर ये सबूत मिल गए कि 9 अगस्त की सुबह से लेकर रात तक अस्पताल परिसर के अंदर सबूतों के छेड़छाड़ की गई है, तो फिर इसी इल्जाम में प्रिंसिपल घोष को सीबीआई गिरफ्तार भी कर सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने पूछे ये सवाल

वारदात वाले दिन यानी 9 अगस्त को अस्पताल प्रशासन की तरफ से हुई देरी और लापरवाही को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी आज तमाम सवाल उठाए थे. कोर्ट बार-बार ये पूछ रहा था कि घटना वाले दिन कब डीडी एंट्री हुई? कब केस डायरी दर्ज हुई? कब एफआईआर लिखी गई? पोस्टमार्टम कितने बजे हुआ? लाश घर वालों को कब सौंपी गई? अंतिम संस्कार कब हुआ? पंचनामा कितने बजे किया गया?

अननैचुरल डेथ को लेकर अदालत ने पूछे सवाल

के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डीडी एंट्री सुबह 10 बजकर 10 मिनट पर दर्ज की गई, जबकि एफआईआर रात साढ़े ग्यारह बजे लिखी गई. ये बात परेशान करने वाली है. इसके साथ ही जस्टिस पारदीवाला ने पश्चिम बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि जब आप बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए लेकर गए, तो ये मामला अननैचुरल डेथ का था या नहीं? अगर ये अननैचुरल डेथ नहीं थी, तो फिर पोस्टमार्टम की क्या ज़रूरत थी? उन्होंने कहा कि आप ये बताइए कि एफआईआर से पहले आपने पुलिस की डायरी में ये कब मेंशन किया कि ये अननैचुरल डेथ थी?

FIR से पहले पोस्टमार्टम पर हैरानी

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि अननैचुरल डेथ रात साढ़े ग्यारह बजे और एफआईआर रात 11 बज कर 45 मिनट पर दर्ज की गई, क्या ये तथ्य सही है? इस पर पश्चिम बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पोस्टमार्टम शाम 6 से 7 बजे के बीच हुआ और अननैचुरल डेथ दोपहर 1 बज कर 45 मिनट पर दर्ज की गई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम दोनों रिपोर्टों को कैसे मिला सकते हैं? अननैचुरल डेथ के रजिस्ट्रेशन से पहले पोस्टमार्टम होता है, ये आश्चर्यजनक है.

देरी से क्राइम सीन की घेराबंदी

पश्चिम बंगाल सरकार और खास कर पुलिस के रवैये से कोर्ट बेहद नाराज़ नजर आया. चीफ जस्टिस ने कहा- आप अपने दस्तावेज में देखें. पुलिस डायरी में एंट्री सुबह 5 बज कर 20 मिनट की है. अस्पताल से पुलिस को सुबह 10 बज कर 10 मिनट पर सूचना दी गई कि एक महिला अर्द्धनग्न हालत में पड़ी हुई है. मेडिकल बोर्ड ने राय दी कि उसके साथ रेप हुआ और पुलिस की जीडी एंट्री ये पता चलता है कि मौका-ए-वारदात की घेरेबंदी पोस्टमार्टम के बाद की गई.

परिंटेडेंट की भूमिका पर भी सवाल

जस्टिस पारदीवाला ने तो गुस्से में कहा कि इस केस में राज्य सरकार ने जिस तरह से काम किया, वैसा उन्होंने अपने 30 साल के करियर में कभी नहीं देखा. उन्होंने अस्पताल की असिस्टेंट सुपरिंटेडेंट की भूमिका पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि उनका आचरण संदिग्ध है. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि वो एक महिला हैं.

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