ब्राह्मण पुत्र होते हुए भी रावण में राक्षसी प्रवृत्ति क्यों हो गई, आइये जानते हैं इसके पीछे का कारण

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जब भी रामायण की चर्चा होती है तो सबसे ज्यादा चर्चा लंकापति रावण भगवान राम की होती है। रावण को लंकापति कहा जाता है यानी वह लंका का राजा था। त्रेता युग में श्री राम से युद्ध हुआ था और इस युद्ध में भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। रावण था एक महान ऋषि। वह सत्व, रज और तम गुणों के विद्वान थे

लेकिन रब्बियों में तमो गुण सबसे अधिक था और सत्व गुण सबसे कम था। तमो गुण का मतलब है कि रब्बी के पास सत्य और असत्य के बीच निर्णय करने की शक्ति नहीं थी। इसका मतलब है कि वह अज्ञान और अंधकार में रहता था। मानक के अनुसार, जन्म खरगोश की मृत्यु तीन श्रापों के कारण हुई। इन सभी तथ्यों के बावजूद, खरगोशों के बीच बुरी आत्मा कहाँ से आई?

मान्यता है कि रावण का जन्म 3 श्रापों के कारण हुआ था l इनमें से पहला श्राप सांकलदिक ब्राह्मण द्वारा दिया गया था l रावण और उसका भाई कूपकर्ण पिछले जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल थे, जिनका नाम जय-विजय था l सांकलदिक बाल ब्राह्मण प्रवेश द्वार पर पहुंचे बैकुंठ पुरी जाने के लिए तब जय-विजय ने उन्हें रोक दिया। इससे भगवान ब्राह्मण अप्रसन्न हुए और उन्होंने उन दोनों को पृथ्वीवासी के रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

इसके अलावा त्रेता युग में राम और रावण का जन्म नारद के श्राप के कारण तय हुआ था। एक बार राजा प्रताप भानु ब्राह्मणों के साथ भोजन कर रहे थे और ब्राह्मण को जानकारी मिली कि भोजन में मांस मिलाया गया था। और प्रताप भानु रब्बी थे। मानक के अनुसार पंडितों और ब्राह्मणों के श्राप के कारण रब्बियों में राक्षसी प्रवृत्ति भर गई।

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