एक बार एक गुरुदेव अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे …….
एक बार एक गुरुदेव अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे …….
एक विशाल नदी जो कि सदाबहार थी , उसके दोनो तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था!
नदी के इधर एक राजा था , राजा को बड़ा अहंकार था । कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता ।
वहाँ एक दास भी था बहुत ही विनम्र और सज्जन!
एक बार राजा और दास दोनों नदी के पास गये । राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की इच्छा व्यक्त की ।
दो नावें थी, रात का समय था, एक नाव में राजा सवार हुआ और दूसरे मे दास सवार हुआ । दोनो नाव के बीच में बड़ी दूरी थी!
राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया । सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा कि दास नदी के उस पार से इधर आ रहा है!
दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा तो राजा ने पूछा कि किस तुम रातभर मन्दिर मे थे ?
दास ने कहा कि जी हाँ और महाराज, क्या मनोहर प्रतिमा थी परमात्मा की, पर आप क्यों नही आये!
अरे मैंने तो रात भर चप्पू चलाया लेकिन……..
फिर गुरुदेव ने शिष्य से पूछा बताओ कि राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उसपार न पहुँचा ? ऐसा क्यों हुआ ? जब की उसपार पहुँचने मे एक घंटे का समय ही बहुत था !
शिष्य – हॆ गुरुदेव, मैं तो आपका अबोध सेवक हूँ । मैं क्या जानू , आप ही बताने की कृपा करे देव!
गुरुदेव – शिष्य, राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नही खोला! और तुम जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहना पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नही फेंकोगे, आसक्ति की रस्सी को नही काटोगें, तुम्हारी नाव किनारे तक नही पहुंचेगी!