भगवान श्रीकृष्ण का राधा से शादी ना करने की ये थी वो खास वजह
आप सभी यह तो जानते ही होंगे कि भगवान विष्णु जी इस पृथ्वी पर बार-बार अवतार लेते रहते थे। इस कारण उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी जी की भी यह इच्छा हुई कि वें भी भगवान विष्णु जी के साथ पृथ्वी पर अवतार ले और भगवान विष्णु जी के साथ उनके धर्म के कार्य में उनकी सहयोगी बने। इसीलिए त्रेता युग में भगवान विष्णु ने जब श्री राम का अवतार लिया तो देवी लक्ष्मी जी ने देवी सीता के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया था। इसके बाद देवी लक्ष्मी जी द्वापर युग में फिर से देवी रुक्मणी के रूप में भगवान श्री कृष्ण जी के साथ पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।
द्वापर युग में देवी लक्ष्मी जी ने रुक्मणी जी के रूप में विदर्भ देश के राजा “भीष्मक” के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। रुकमणी के जन्म से राजा भीष्मक बहुत खुश हो गए थे, परंतु रुकमणी के जन्म के कुछ महीनों बाद ही एक पूतना नाम की राक्षसी रुक्मणी को मारने के लिए राजा भीष्मक के महल में आ गई थी। यह पूतना वही राक्षसी थी जिसने कंस के कहने पर भगवान श्री कृष्ण को बचपन में अपना जहरीला दूध पिलाकर मारने की कोशिश की थी, परंतु वह राक्षसी भगवान श्री कृष्ण के द्वारा मृत्यु को प्राप्त हो गई थी।
राक्षसी पूतना ने अपने जहरीले दूध को रुकमणी जी को भी पिलाने की कोशिश की थी। बहुत कोशिशों के बाद भी पूतना अपने इस कार्य में सफल ना हो सकी। पूतना जब देवी रुक्मणी को अपना जहरीला दूध पिलाने का असफल प्रयास कर रही थी तभी कुछ लोग महल के अंदर आ गए थे। अचानक लोगों के इस तरह आ जाने के कारण राक्षसी पूतना देवी रुक्मणी को लेकर आसमान में उड़ गई थी। यह देखकर लोगों ने राक्षसी पूतना का बहुत दूर तक पीछा किया परंतु राक्षसी पूतना देवी रुक्मणी को लेकर आसमान में बहुत ऊपर उड़ गई।
यह देखकर सभी लोगो ने देवी रुक्मणी के जीवित रहने की आस छोड़ दी थी। इधर जब पूतना आकाश में बहुत ऊपर उड़ रही थी तब देवी रुक्मणी ने अपने आपको उस पूतना राक्षसी से आजाद कराने के लिए अपना वजन बढ़ाना शुरू कर दिया था। देवी रुक्मणी ने अपना वजन इतना बड़ा लिया था कि पूतना राक्षसी को उनका भार उठा पाने में मुश्किल हो रही थी। इसलिए उसने देवी रुक्मणी को अपने हाथ से छोड़ दिया था। इस कारण पूतना के हाथ से छूटकर देवी रुक्मणी आसमान से पृथ्वी पर एक सरोवर में कमल के फूल पर विराजमान हो गई थी।
राक्षसी पूतना के कारण विदर्भ राज्य की राजकुमारी देवी रुक्मणी मथुरा राज्य के एक गांव बरसाना के पास एक सरोवर में आकर गिरी थी। उसी समय बरसाना के एक निवासी वृषभानु अपनी पत्नी कृति देवी के साथ उस सरोवर के किनारे से गुजर रहे थे। तभी उन दोनों की नजर सरोवर के एक कमल के फूल पर विराजमान उस बच्ची रुक्मणी पर पड़ जाती है। इसके बाद वृषभानु और उनकी पत्नी देवी रुक्मणी को उठाकर अपने साथ ले जाते हैं और वें उन्हें अपनी बेटी बनाकर उनका पालन पोषण करने लगते हैं। वें इस बच्ची का नाम “राधा” रख देते हैं।
राधा जी जब बड़ी होती हैं तब उनकी मुलाकात गोकुल के भगवान श्रीकृष्ण से होती है। आप लोग राधा जी और कृष्ण जी के अटूट प्रेम और उनकी रासलीला के बारे में तो बहुत कुछ जानते ही होंगे और साथ ही साथ यह भी जानते होंगे कि एक समय विवश होकर भगवान श्री कृष्ण जी अपने गोकुल और राधा जी को छोड़कर द्वारिकापुरी चले गए थे। तब भगवान श्री कृष्ण जी ने यह सोचा था कि वापस आने के बाद वें अपनी राधा के साथ विवाह करके उन्हें अपनी पत्नी बनाएंगे। परंतु उनके जाने के कुछ समय बाद ही विदर्भ राजा भीष्मक को यह पता चल जाता है कि राधा उनकी पुत्री रुक्मणी है।
इसके बाद राजा भीष्मक बरसाना आकर अपनी बेटी रुक्मणी को अपने साथ अपने विदर्भ देश लेकर चले जाते हैं। विदर्भ राज्य भगवान श्री कृष्ण के दुश्मनों का राज्य था इसलिए वह लोग देवी रुक्मणी की शादी किसी और के साथ करा देना चाहते थे। इसी कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपनी रुकमणी जोकि उनकी राधा भी थी, उनका हरण करके उन्हें अपनी पत्नी बना लिया था। इस कहानी को सुनकर आप समझ ही गए होंगे कि राधा जी और रुक्मणी जी एक ही थी। इसलिए जब भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी के साथ विवाह किया था तो वें राधा जी के साथ विवाह कैसे करते।
इसी कारण हमारे पुराणों में भी जब तक राधा जी और भगवान श्री कृष्ण जी का नाम आता है तब तक रुकमणी जी का कोई नाम नहीं आता है। इसके बाद जब भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी जी के साथ विवाह कर लेते हैं तो उसके बाद राधा जी का कोई नाम नहीं आता है। महाभारत में इस प्रकार के कई और भी रोचक किस्से हैं जिन्हें हम आपको अपने आने वाले आर्टिकल में बताते रहेंगे। आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताइए। अगर आपको हमारा यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे लाइक और शेयर जरूर कीजिए। 4 आसान से सवालों के जवाब देकर जीतें 400 रु– यहां क्लिक करें।
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