इमरान खान के घर की तलाशी लेंगे 400 पुलिसकर्मी, लागू होगा आर्मी एक्ट

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पाकिस्तान में राजनीतिक संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर एक बार फिर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई है। लाहौर के जमान पार्क स्थित उनके घर के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात है. जल्द ही उनके घर की भी तलाशी ली जा रही है।

लाहौर पुलिस को सर्च वारंट मिला है। इमरान खान पर अपने घर में 40 आतंकियों को छुपाने का आरोप है। इन आतंकियों की तलाश के लिए पुलिस कभी भी इमरान खान के घर पहुंच सकती है. पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इमरान खान के घर पर 400 पुलिस कर्मी सर्च ऑपरेशन चलाएंगे।

आशंका जताई जा रही है कि तलाशी के दौरान एक बार फिर इमरान खान को गिरफ्तार किया जा सकता है। इतनी बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों के पहुंचने से इस संबंध में कयास लगाए जा रहे हैं। दरअसल, इमरान खान के समर्थकों पर 9 मई को जिन्ना हाउस पर हमला करने का आरोप है, जहां पाकिस्तानी सेना के कॉर्प्स कमांडर रहते हैं। इस हमले के बाद इमरान खान घिर गए हैं और सेना के अपमान का आरोप लगाया है। फिलहाल इमरान खान ने भी हमले की घटना की निंदा की है, लेकिन उन्हें लगातार निशाना बनाया जा रहा है.

इस बीच खबर है कि इमरान खान और उनके समर्थकों पर आर्मी एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है। इस एक्ट के तहत दो साल से लेकर उम्रकैद और मौत की सजा का प्रावधान है। फिलहाल इमरान खान के लिए राहत की खबर यह है कि लाहौर की आतंकवाद निरोधी अदालत ने नौ मई को जिन्ना हाउस पर हुए हमले समेत तीन मामलों में उन्हें दो जून तक अग्रिम जमानत दे दी है.

हालांकि, लाहौर पुलिस ने 9 मई को हुई हिंसा के मामले में 8 लोगों को गिरफ्तार किया है. पुलिस का कहना है कि ये लोग इमरान खान के घर के पास छिपे हुए थे और भागते हुए पकड़े गए.

 इमरान खान और उनके समर्थकों पर आर्मी एक्ट लगाए जाने की खबर के बाद से ही पूर्व प्रधानमंत्री और उनके समर्थकों में डर का माहौल है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें काफी सख्त प्रावधान हैं और एक बार केस दर्ज हो जाने के बाद बचना मुश्किल है। इसके तहत दो साल से लेकर उम्रकैद और मौत की सजा तक का प्रावधान है। 1952 में आए इस एक्ट के तहत इसकी कार्रवाई सिर्फ उन्हीं पर है, जो सेना में हैं। लेकिन ऐसे नागरिकों पर भी कार्रवाई हो सकती है, जिन्होंने सेना से जुड़ी संस्थाओं पर हमला किया हो. इसके दायरे में नौ मई की घटना बताई जा रही है।

आर्मी एक्ट इतना सख्त है कि जिस कोर्ट में इसके तहत केस की सुनवाई होती है, वहां जज आर्मी ऑफिसर होता है। इसके अलावा सेना के अधिकारी भी होते हैं जो वकील के रूप में पक्ष लेते हैं। 1966 में, अयूब खान के शासन के दौरान, इस अधिनियम को नागरिकों तक विस्तारित करने का निर्णय लिया गया। इसके तहत अगर कोई नागरिक या संगठन सेना से जुड़ी संस्थाओं पर हमला करता है तो यह एक्ट लगाया जाएगा। इन मामलों की सुनवाई भी आर्मी कोर्ट में ही होती है। इसलिए उन्हें लेकर डर बना रहता है क्योंकि वहां सेना का प्रभाव पाया जाता है।

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