गायत्री मंत्र माना जाता है चेतना का स्त्रोत, कलयुग का अमृत है गायत्री मंत्र

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Jyotish :-पौराणिक धर्मशास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र का प्रार्दुभाव ज्येष्ठ मास की शुक्ल दशमी को हुआ था। इस मंत्र के ब्रहमऋषि विश्वामित्र दृष्टा बने और उन्होंने विश्व कल्याण के लिए इसे गृहस्थ और सन्यासियों में प्रचलित किया। गायत्री मंत्र को गुरु मंत्र के साथ साथ भारतीय आध्यात्मिक चेतना का स्त्रोत भी माना जाता है।

मां गायत्री को हमारे वेदों में वेदमाता कहा गया है। मां गायत्री की महिमा चारों ही वेद गाते हैं, जो फल चारों वेदों के अध्ययन से होता है, वह एक मात्र गायत्री मंत्र के जाप से हो सकता है, इसलिए गायत्री मंत्र की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है।

हिंदू ग्रंथों के अनुसार गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं तथा उसे कभी किसी वस्तु की कमी नहीं होती। गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं, जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं। विधिपूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षा कवच का निर्माण करती है व विपत्तियों के समय उसकी रक्षा करती है।

क्या है गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर् वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमः। धियो यो न: प्रचोदयात्।

ॐ-भगवान्
भूः-जीवनशक्ति
भुवः- दुःख विनाशक
स्व: – सुख स्वरूप
तत् – उस
सवितु:- शानदार
वरेण्य – सर्वोत्तम
भर्ग:-पापों का नाश करने वाला
ईश्वर का – दिव्य
धीमहि – धारण करे
धियो – बुद्धि
ये – कौन
न: – हमारी
प्रचोदयात् – प्रेरित करे

सभी को जोड़ने पर अर्थ है- उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।

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