असम में मुस्लिम विवाह और तलाक कानून खत्म करने का फैसला, यूसीसी की ओर हिमंत सरकार का पहला कदम
असम सरकार ने राज्य में बाल विवाह को रोकने के लिए मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को समाप्त कर दिया है। यह फैसला कल देर रात हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि 23 फरवरी को असम कैबिनेट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को वापस ले लिया है।
असम सरकार ने कहा कि मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण कानून के खत्म होने के बाद मुस्लिम विवाहों का पंजीकरण भी विशेष विवाह अधिनियम के तहत जिला आयुक्त और जिला रजिस्ट्रार द्वारा किया जाएगा, जो पहले 94 मुस्लिम विवाहों का पंजीकरण करते थे. सरकार ने घोषणा की है कि मुस्लिम विवाह पंजीकृत करने वाले रजिस्ट्रारों को हटा दिया जाएगा और उन्हें 2-2 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा दिया जाएगा।
कानून को हटाने के पीछे सरकार ने तर्क दिया है कि यह कानून अंग्रेजी शासन काल का है. मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम के तहत विवाह और तलाक का पंजीकरण आवश्यक नहीं था। साथ ही विवाह पंजीकरण की व्यवस्था पूर्णतः अनौपचारिक थी जिसके कारण नियमों की अनदेखी हो रही थी तथा बाल विवाह पर निगरानी भी नहीं हो पा रही थी।
कानून के तहत राज्य सरकार मुसलमानों को शादी और तलाक का पंजीकरण कराने का लाइसेंस देती थी, लेकिन अब कानून हटने के बाद कोई भी व्यक्ति शादी और तलाक का पंजीकरण नहीं करा सकेगा और यह सब औपचारिक होगा. राज्य सरकार के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने भी दावा किया कि इस कानून का पारित होना राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.